google.com, pub-1642391381666085, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Animals In Love: कस्तूरी मृग - इस दुर्लभ पशु की नाभि से बहती है सुगंधित धारा

Monday, June 14, 2021

कस्तूरी मृग - इस दुर्लभ पशु की नाभि से बहती है सुगंधित धारा

अब तक हिरणों की 60 से भी अधिक किस्मों का अध्ययन किया जा चुका है। इन किस्मों में एक ऐसा भी हिरण होता है, जिससे कस्तूरी प्राप्त की जाती है। इसे कस्तूरी मृग (Musk Deer) कहते है। यह मोशिडे परिवार का प्राणी है। कस्तूरी मृग एकांत में रहने वाला बहुत ही सीधा और छोटा सा जानवर होता है। 



उत्तराखंड का राज्य वन्य पशु 

दुर्लभ वन्य जीव प्रजाति 'कस्तुरी मृग' उत्तराखंड का राज्य वन्य पशु है। जिसकी गिनती जंगल के खूबसूरत जीवों में होती है। कस्तुरी मृग को 'हिमायलन मस्क डियर' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे इसका वैज्ञानिक नाम 'मास्कस क्राइसोगौ' है। बताया जाता है कि यह मृग सामान्य मृगों की तुलना में कहीं ज्यादा आदिम है। कस्तुरी मृग मोशिडे परिवार का है, जिसकी मुख्यत : 4 प्रजातियां हैं।




इनके कान बड़े होते हैं, लेकिन पूंछ बहुत ही छोटी होती है। इनके सिर पर 10 मृगों की भांति सींग नहीं होते, इनका रंग भूरा कत्थई होता है। कस्तूरी मृग की ऊंचाई 50 से 60 सेंटीमीटर (20-24 इंच) तक होती है।




नर मृग के पेट में कस्तूरी पैदा करने वाला अंग होता है. नर हिरण के दांत बाहर निकले होते हैं । जो नीचे की ओर झुके होते हैं।


नाभि से निकलती है सुंगधित धारा 


अपनी आकर्षक खूबसूरती के साथ यह जीव नाभि से निकलने वाली अप्रतिम खुशबू के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है। जो इस मृग को सबसे बड़ी खासियत है। इस मृग की नाभि में गाढ़ा तरल (कस्तूरी) होता है जिसमें से मनमोहक खुशबू की धारा बहती है। बता दें कि कस्तूरी केवल नर मृगों में ही पाया जाता है। यह जीव उत्तराखंड के अलावा अन्य हिमालयी क्षेत्रों (हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, सिक्किम) में भी पाया जाता है।




कस्तूरी एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें तीखी गंध होती है। कस्तूरी मृग के पेट की त्वचा के नीचे नाभि के पास एक छोटा सा थैला होता है, जिसमें कस्तूरी का निर्माण होता रहता है। ताजी कस्तूरी गाढ़े द्रव के रूप में होती है, लेकिन सूखने पर दानेदार चूर्ण के रूप में बदल जाती है। कस्तूरी का प्रयोग उत्तम प्रकार के साबुन और इत्र बनाने में प्रयोग किया जाता है, क्योकिं इसकी सुगंध बड़ी ही मनोरम होती है।


नहीं छोड़ता अपना निवासस्थान 



इस जीव की एक खास बात यह भी है कि यह अपना निवास स्थान सर्द मौसम में भी नहीं छोड़ता। भले ही यह जीव भोजन की तलाश में दूर निकल जाए पर लौट कर अपने आश्रय में ही आराम करता है। इस जीव की याददाश्त शक्ति काफी मजबूत बताई जाती है, जिस वजह से यह अपना रास्ता कभी नहीं भूलता । इसके अलावा यह मृग काफी शर्मीली प्रवृति का जानवर है। कस्तूरी मृग की घ्राण शक्ति (सूंघने की क्षमता) बहुत तेज होती है।


इस खास जीव के लिए आरक्षित किए गए वन्य क्षेत्र

अस्कोट वन्य जीव अभयारण्य (मस्क डियर) 
अस्कोट वन्य जीव अभयारण्य उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से करीब 54 किमी की दूरी पर स्थित है। यह वन्य अभयारण्य मुख्यत: कस्तूरी मृग के लिए आरक्षित किया गया है, जिससे कि इस दुर्लभ प्रजाति को बचाया जा सके।

केदारनाथ वन्य जीव अभयारण्य 
लगभग 967 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला केदारनाथ वन्य जीव अभयारण्य उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। हिमालयी वन्य जीव सुरक्षा के लिए इस अभयारण्य की स्थापना 1972 में की गई थी। यह अभयारण्य राज्य के सबसे पवित्र क्षेत्र में बसाया गया है।

कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभयारण्य 
कांचुला काकोर मस्क हिरण अभयारण्य उत्तराखंड के चोपता-गोपेश्वर मार्ग पर स्थित है। 5 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य हिमालयी वन्य जीवों के लिए आरक्षित है, जहां आप खूबसूरत कस्तूरी मृग को भी देख सकते हैं। यह वन्य क्षेत्र कस्तूरी मृग के प्रजनन विकास के लिए भी जाना जाता है। जिससे ये अपनी आबादी बढ़ा सकें।

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